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Aditya Hridaya Stotra In Hindi, Sanskrit & Marathi

नमस्कार,

Aj Hum bat karne wale he aditya hridaya Strotra ke bareme.Aj me apko Aditya Hridaya Strotra ki Free PDF bhi dunga jise ap apne mobile par download krke padh sakte he.chaliye Guys to dekhte he Aditya Hridaya Strotra.

Aditya Hridaya ke Fayde[आदित्य हृदय स्त्रोत्र के फायदे]

इसके नित्य पठन से आप अपणे पापोको कम या उन्हे मिटा सकते हे | इस के आलावा ये हमारे चिंता को मिटाता हे और शोक को भी कम करता हे |

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से वृषभ राशी वाले लोगोको के स्वास्थ्य और संपत्ति की समस्याओं में सुधार होता है।

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से मेष राशी वाले को संतान की समस्याओं से छुटकारा और संतान प्राप्ति का लाभ मिलता है।

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से मिथुन राशी वाले को दुर्घटनाओं से रक्षा और भाई-बहनों से अच्छे संबंध रहते हैं।

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से कर्क राशी वाले को धन-लाभ, सिरदर्द और आंखों की समस्या से मुक्ति मिलती है।

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से सिंह राशी वाले को हर प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

आदित्य हृदय स्त्रोत्र के पठन से कन्या राशी वाले को विदेश यात्रा, अच्छा वैवाहिक जीवन और अच्छे स्वभाव की प्राप्ति होती है।

 

विनियोगः

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः,

आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया

ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।।

ध्यानम्-

 

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,

जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,

त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,

विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

Aditya Hridaya Stotra in Sanskrit

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ।।१।।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।

उपगम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ।।2।।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ।।3।।

आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् ।

जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम् ।।4।।

सर्वमङ्गल माङ्गल्यं सर्व पाप प्रणाशनम्।

चिन्ताशोक प्रशमनम् आयुर्वर्धन मुत्तमम् ।।5।।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् ।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।।6।।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।

एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ।।7।।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ।।8।।

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः ।

वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ।।9।।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।

सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः ।।10।।

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्ति-र्मरीचिमान् ।

तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्डको‌ऽशुमान् ।।11।।

हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः ।

अग्निगर्भो‌दितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ।।12।|

व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुःसाम-पारगः ।

धनावृष्टि-रपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ।।13।।

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ।।14।।

नक्षत्र ग्रह ताराणाम् अधिपो विश्वभावनः ।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्-नमोऽ‌स्तु ते ।।15।।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।।16।।

 

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ।।17।।

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।

नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ।।18।।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्य-वर्चसे ।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ।।19।।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नाया मितात्मने ।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ।। 20।।

तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे ।

नमस्तमो‌ऽभि निघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ।। 21।।

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः ।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ।। 22।।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।

एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्नि होत्रिणाम् ।। 23।।

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ।।24।।

फलश्रुति

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ।।25।।

पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ।।26।।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि ।

एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ।।27।।

एतच्छ्रुत्वा महातेजाः नष्टशोको‌ऽभवत्-तदा ।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ।।28।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् ।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ।।29।।

रावणंप्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।

सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतो‌ऽभवत् ।।30।।

अथ रविरवदन्-निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।

निशिचरपति सङ्क्षयं विदित्वा सुरगण मध्यगतो वचस्त्वरेति।।३१।।

Aditya Hridaya Stotra in Hindi

उधर थककर चिंता करते हुए श्री राम जी रणभूमि में खड़े थे, उतने में रावण भी  युद्ध के लिए उनके सामने आ गया। यह देखकर अगस्त्य मुनि श्री राम चंद्र जी के पास गए और इस प्रकार बोले।।

सभी के हृदय में रमण बसने वाले हे लम्बी भुजाओं वाले राम ! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो। इस स्तोत्र के जप से तुम अवश्य ही शत्रुओं पर विजय पाओगे।। यह आदित्य ह्रदय स्तोत्र परम पवित्र और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला है। इसके जप से सदा ही विजय की प्राप्ति  होती है। यह नित्य अक्षय तथा परम कल्याणकारी स्तोत्र है।।

यह सभी मंगलों में भी मंगल और सभी पापों का नाश करने वाला यह स्तोत्र चिन्ता और शोक को मिटाने वाला और आयु को बढ़ाने वला है।। जो अनंत किरणों से शोभायमान, नित्य उदय होने वाले, देवों और असुरों दोनों के द्वारा नमस्कृत हैं, तुम विश्व में अपनी प्रकाश फैलाने वाले संसार के स्वामी भगवान् भास्कका पूजन करो।।

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।

संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।

ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।

इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व, सहस्रार्चि(हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है

पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है ।

आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं । आपको बारबार नमस्कार है । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य ! आपको बारम्बार प्रणाम है । आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है ।

उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है ।

आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है ।

आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है

रघुनन्दन ! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं ।

ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं ।

देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।

राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता ।

इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे ।

महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए ।

उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया । उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे । उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया ।

उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’ ।इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है |

Aditya Hridaya Stotra in Marathi

दुसरीकडे श्री रामचंद्रजी युद्धाने थकलेल्या चिंतेत रणांगणात उभे होते. यात रावणही युद्धासाठी त्याच्यासमोर हजर झाला. हे पाहून भगवंतांशी युद्ध पाहण्यासाठी आलेले भगवान अगस्त्य मुनी श्रीरामाकडे गेले आणि म्हणाले. सर्वांच्या हृदयात विसावणारे महाबाहो राम!

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